Tuesday, December 9, 2014

मन की छटपटाहट

क्षितिज सा अंतहीन सफर
अपने ही सायों के सिरों तक 
बिफरे हुये आकाश के आइनों में
टुटे हुये मन की छटपटाहट.......

वेदना पत्थर की सिरा पर
फुट रहे झरने आखों से
थकी हुई इच्छाओं की दुविधा में
टूटे हुए मन की छटपटाहट.......

समय बेबस सा हाथों में बंद
साझं के सन्नाटे की दुविधा में
उम्र ही ढल गई विचारों के क्षणों में
टुटे हुये मन की छटपटाहट.......

सुरज तपे मन की पीडा में
टुटे निर्मोही रिश्ते कंधो पर लादे
विवशता से प्रेरित दुख के अंतर में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

मंजिलों को तरसे टूटी दिवारें
आस्थाएं निराशा की वेदना में
पल पल ओझल पडाव के छल में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

दूर तक फैले आंसुओ की झील
एकाकी निर्जन सपने उलझाये
बीते हुए मौसम के डूबते सूरज में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

साँझ धीरे धीरे गगन से उतरती हुई
अदृष्य को गढता गिले गालों पर 
निर्जीव मन की देह से सृजन करता गरल
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

1 comment:

doshiza said...

खूबसूरत