Saturday, November 29, 2014

तेरी ही कहानी

चेतना नई भरकर
तारों के दिपो में
शुष्क चिंगारी के सहारे
धरा पर कहीं रह न जायें
तेरी ही कहानी ।।।

मेरी जिद स्वप्न में
उत्पीडन से वंचित
नदियों में तैरते - तैरते
धुप मुस्कुराती हुए चली
तेरी ही कहानी ।।।

अहसास में डुबा स्वप्न
आस की अंतिम सांस
नीले झील की चादर
उफनती इक पहेली
तेरी  ही कहानी ।।।

पल पल आभास

पत्थर मन में उलझे अरमान
रक्त रंजित तिरछी रौशनी
पाषाणो के कुम्हलाए फुलो में
पल पल आभास.....

व्यथा की धुप संबंधो में
अपनी ही छाया सुखी टहनी पर
स्याही पिते जंगल की छाया में 
पल पल आभास.....

झिझकते प्रतिक्षण मन चिंतन
छलती  अहसासों की बाधायें
जलते पाँव, भरे आँख निहारे
पल पल आभास.....

पलकों पर अधरों की आहट
फुल फुल मन में बिखर गया
परिवर्तित जन्मों के साथ मे
पल पल आभास.....

Friday, November 28, 2014

किश्तों में जिंदगी

आँखों में क्षण क्षण 
प्रश्न जीवन के पल चिन्ह
कलिया आहत स्वयं हलाहल 
किश्तों में जिंदगी पल पल 

अभिशप्त आवारा आंखो के सपने
इन आहटों की अनहोनी परछाई
उलझे हुए संबंधो के धागे 
किश्तों में जिंदगी पल पल

सकुचाते मन की तन्हाइयो
कुछ भ्रमित कुछ डरी डरी
मचाते दिन दिन उत्पात
किश्तों में जिंदगी पल पल

अधुरे पडे संकलन के अहसास
बंधनों में थके दर्द के रूप
हर आँख की छाया में प्रश्न
किश्तों में जिंदगी पल पल

इच्छाओं के दर्द की इमारत
छिन्न छिन्न होते हुये
भीगी निगाहों में दर्द
किश्तों में जिंदगी पल पल

Tuesday, November 25, 2014

अपरिचित....

डबडबाती आखों से
 कैसे निहारे मन में
गरल से भरे अमृत कलश..
भावनाए... अपरिचित, अदृश्य
आस्था के भ्रम में डूबते हुए
अपरिचित बन बह गये...

संबंधो की शिला सहमकर
रुदन का बोध, अंधेरी आंधियों में
थक गए आंसुओ के हर शब्द
सीमा रेखाएं चुपचाप तोड गया
भावनाओ...के निर्झर आंचल से
अपरिचित बन बह गये...

Sunday, November 23, 2014

आत्मसमर्पण

रात दिन यादों के स्मरण में
अज्ञात दिशाओं में भटकता
लुढक रहा यादों का उफान
निशानी नहीं दुर तक कोई
टुटे चेहरे,आईने की यादों में
झर झर झरना बन गए
संबंधो के बहस में
आत्मसमर्पण,
अभिशाप सा बन गया 

कुछ कुछ कहा , मैंने

शाम अब ढलने लगी है
उम्मीद बाकि है अभी
तेरे क़दमों की आहट सुनने को  
कुछ  कुछ कहा , मैंने 

एक बार सोचो ना 
अपने संग चलने दे
सोचा कि भूल जाऊँ हर सपने को 
कुछ  कुछ कहा , मैंने 

जो कुछ है बाकी  
ना होने देंगे प्रकट
समझेगा कभी मेरी सोच को
कुछ  कुछ कहा , मैंने 

रौशनी की चकाचौंध से
बातों से जिंदगी में
बढ़ाने हमें फिर भी कदम  को
कुछ  कुछ कहा , मैंने 
                                                                                       

मौन...

नुपुर मेरे भावों के
भीतर छिपे गहराई में
पैरों के आहट पर 
मौन शब्दों में झन झन झन

सिसकते लम्हे सिमित से मन में
टूटे हुए सपनो के हवा में 
अपनी ही तन्हाइयो में दबाकर
मौन शब्दों में झन झन झन

दोषी नहीं उन पंक्तियों का
जो शब्दों में समा चुकी है
अपेक्षायें समय के साथ रहकर
मौन शब्दों में झन झन झन


Saturday, November 22, 2014

स्पर्श....

स्पर्श 
नौ माह के उगम का
ऊंगलियों के स्पर्श का
ममतामयी आंचल का

स्पर्श
ऊंगली पकडकर चलने का
ननई दिशाओं में बढने का
पितृत्व भावनाओं का

स्पर्श
सरस्वती के आह्वान का
उन्नती की ओर चलने का
संकल्प गुरु कृपा  के महत्व का

स्पर्श
सप्तपदी निभाने का
साथ साथ चलने का
जीवन संगिनी के सपनों का

स्पर्श
अंतिम प्रणाम करने का 
अंतिम यात्रा समझने का
अनंत में लीन होने का

अधुरी यादें

छोटी सी कामना
मेरी तन्हाइयो में
जब भी यहां वो आये
खोलेगी भेद आखो के
एक एक अधुरी यादें

धडकनों की मंजिल से
ख्यालों को बनाते हुए
लम्हा लम्हा हर पल 
अगन को ठंडक देती हुई
एक एक अधुरी यादें

अर्पित करू शब्दों में
रिस रिस तडप कर
पलों को संजोते हुये
लिखना अभी और है 
एक एक अधुरी यादें

जरा सा आसमान
अंतिम पल पल में
पहरा देते धरा पर
हवा के बहाव में बह गये
एक एक अधुरी यादें

एक क्षण.....

प्रतीक्षा में तुम्हारी, 
कोई यह न कहे
क्षणिक सुख  के लिए
बूँद की तरह, 
तुममे विलीन हो जाऊं
बूंदों का अहसास 
कुछ कुछ उमंगो की लहर 
फिर एक ????????
स्वप्न था या यथार्थ
सिवा दोनों के
बिना अनुमति के
कुछ सोंच नहीं पाती.........

सखी....

     
चित्र गुगल से साभार
  सखी……
रिमझिम बारिश के फुवारों में 
आँखों की गहरी तपिश में 
मुझमे अपना सावन उतार दो 
सखी……
बंधे मौसम की आवाजों में 
बिजलियों की हमसाये में 
मुझमे अपना सावन उतार दो 
सखी……
उम्मीदों और हवाओ में 
मुक्त आनंदित स्पर्श में 
मुझमे अपना सावन उतार दो 
सखी……
मिलन की अतृप्त छाया में 
सौंदर्य के साक्षात्कार  में
मुझमे अपना सावन उतार दो 
सखी……
मेघ मल्हार के विरह में 
पहले बरसाती बूंदो में 
मुझमे अपना सावन उतार दो 
सखी……
फूलो से भरे अम्बर में 
तुम ही न मिले जीवन में 
मुझमे अपना सावन उतार दो

Friday, November 21, 2014

मानव

मानव
विचारों में सवार होकर
उलझनों में उलझकर
अपने आपको नहीं पहचानता

मानव
झरनों के इस मंथन मे
समता के भाव दृष्टि में
अपने आप को नहीं पहचानता

मानव
वीणा के इस झंकार में
भटकता श्रेष्ट संसार में
अपने आपको नहीं पहचानता

मानव 
निज नाम के उत्थान में
पथ में पडे दल दल में
अपने आप को नहीं पहचानता

मानव
गुजरते पल  छुने में
समय की लहराती राह में
अपने आपको नहीं पहचानता

मानव
चेतना के विस्तार में
धुप की दिवारों में
अपने आपको नहीं पहचानता

मानव
बचपन के खिलौने में
आंगन की गहराई में
अपने आपको नहीं पहचानता

मानव
सुरज के पिघलने में
सुरमई शाम के अंगारों में
अपने आपको नही पहचानता

मानव
यादो के हल्की धुन्ध में
हवा के तेज झोके में

अपने आपको नहीं पहचानता

आँसू

गिर अंगारों पर
अंग भंग कर
गुमसुम सा डर 
आँसू बूंद बन कर

हर खुशी कांच सी
आँखों का हर कतरा
धीरे धीरे परखने में
आँसू बूंद बन कर

परछाइयों की संकीर्णता
ऋतु के अदृश्य बंधनों
अतीत का अभिसार कर
आँसू बूंद बन कर

टूटा स्वप्न ठिठुरा खडा
लंगडी पीडा धुन्धली छवि
बदल  न पाये भाषा
आँसू बूंद बन कर

सन्नाटा बिना प्यास के
शब्द कुहासे में खो जाते
रात उदासी को चुनकर
आँसू बूंद बन कर

धडकन


पर्वतों से बहता पानी
गर्म सांसों का उठता धुआँ
भुल पर भुल करते हुए
पा न सके जिस धडकन को

खुद ब खुद गहराता समय
इन्तजार में खतम होता हुआ
अधुरे स्वप्न की चुभन में
पा न सके जिस धडकन को

अधरों पर पत्थर रखकर 
मौन संवाद धरा पर
तरसे बूंद बीते पलो की
पा न सके जिस  धडकन  को

Tuesday, November 18, 2014

खामोशी !!!


सुखा पत्ता आसमां सूखा
मद्धम सी बरसात
भरे लम्हों ने बनाया
पर्वत सी खडी, एक खामोशी

क्षण में अंजान
आंचल अपना फैलाये
जिंदगी की कुंजी
पर्वत सी खडी, एक खामोशी

मौन रहस्यों का
कमल की बूंदो पर 
तडप बिखरे आंसू
                        पर्वत सी खडी,  एक खामोशी