पर्वतों से बहता पानी
गर्म सांसों का उठता धुआँ
भुल पर भुल करते हुए
पा न सके जिस धडकन को
खुद ब खुद गहराता समय
इन्तजार में खतम होता हुआ
अधुरे स्वप्न की चुभन में
पा न सके जिस धडकन को
अधरों पर पत्थर रखकर
मौन संवाद धरा पर
तरसे बूंद बीते पलो की
पा न सके जिस धडकन को
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