गिर अंगारों पर
अंग भंग कर
गुमसुम सा डर
आँसू बूंद बन कर
हर खुशी कांच सी
आँखों का हर कतरा
धीरे धीरे परखने में
आँसू बूंद बन कर
परछाइयों की संकीर्णता
ऋतु के अदृश्य बंधनों
अतीत का अभिसार कर
आँसू बूंद बन कर
टूटा स्वप्न ठिठुरा खडा
लंगडी पीडा धुन्धली छवि
बदल न पाये भाषा
आँसू बूंद बन कर
सन्नाटा बिना प्यास के
शब्द कुहासे में खो जाते
रात उदासी को चुनकर
आँसू बूंद बन कर
1 comment:
adhai ho sa badhiya rachnaye hai
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