Friday, November 21, 2014

आँसू

गिर अंगारों पर
अंग भंग कर
गुमसुम सा डर 
आँसू बूंद बन कर

हर खुशी कांच सी
आँखों का हर कतरा
धीरे धीरे परखने में
आँसू बूंद बन कर

परछाइयों की संकीर्णता
ऋतु के अदृश्य बंधनों
अतीत का अभिसार कर
आँसू बूंद बन कर

टूटा स्वप्न ठिठुरा खडा
लंगडी पीडा धुन्धली छवि
बदल  न पाये भाषा
आँसू बूंद बन कर

सन्नाटा बिना प्यास के
शब्द कुहासे में खो जाते
रात उदासी को चुनकर
आँसू बूंद बन कर

1 comment:

Suraj satara said...

adhai ho sa badhiya rachnaye hai