शाम अब ढलने लगी है
उम्मीद बाकि है अभी
तेरे क़दमों की आहट सुनने को
कुछ कुछ कहा , मैंने
एक बार सोचो ना
अपने संग चलने दे
सोचा कि भूल जाऊँ हर सपने को
कुछ कुछ कहा , मैंने
जो कुछ है बाकी
ना होने देंगे प्रकट
समझेगा कभी मेरी सोच को
कुछ कुछ कहा , मैंने
रौशनी की चकाचौंध से
बातों से जिंदगी में
बढ़ाने हमें फिर भी कदम को
कुछ कुछ कहा , मैंने
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