Saturday, December 20, 2014

तन्हाई

चित्र गुगल से साभार

 सागर  के  पास 
तलाश में,
 अहसास जगा 
भीतर  टकराती हुई
धुन्धलाती 
यों ही कटती है 
उलझनों  में  उलझती
आते  जाते  हर  पल 
उदासी  में
कितने दिनों के 
इन्तजार में
अकेलेपन की ज़िंदगी !!!!!

Friday, December 19, 2014

तीन छोटे छंद


1

नीलम के मेघ 
नैनों में दीपक से 
नभ के नवरंग से 
नवजीवन के अंकुर से 
देखी जीवन की राह.........


2

साँझ उषा का आँगन 
मौन मधुरिमा भरी 

निर्वसन झरने 
झर झर बहते हुए 

कभी अपने समय को 
याद करते हुए.........


3

       मन के प्रतिबिम्ब 
धुंधले होते हुए
ह्रदय को  
मरुभूमि बनाते हुए 
भावों को
विस्फोटित करते हुए 
एक स्वप्न की
 तरह बिखर गए ……?

Thursday, December 18, 2014

मेरा सूनापन

चित्र गुगल से साभार

आँखे राह तकती रही 
कारवां गुजरते गए
तन्हाई में भी 
अंधेरो में ही रहता हूँ 
हर राह को तकता
उम्मीद की किरणों मे..
हलचल सी उठी थी
बीत गये बरसो
तेरे दामन की खुशबू में
अब भी है
तेरे आने की आहट
…………सिर्फ  तू ना आई
…………सिर्फ  तू ना आई

Wednesday, December 17, 2014

व्यथा

चित्र गुगल से साभार

अधूरी  कामनाये  
याद  करने  की  कोशिश  में  
सुलझती  नहीं 
उथल-पुथल हो  गई,जिंदगी 

धुनें सुनाई पड़ती हैं
चिंताओं  के  फेरे  में 
सुन न सके दर्द  को 
 तड़पती  रह गई,जिंदगी 

करवटों  के  साये  में 
अहसास  के  क्षणों  में  
बदले  हुए  रिश्तों  में 
मौन  रह गई, जिंदगी

गमो  के  रिश्तो  में  
घिरा  रहता  है  कही 
बिना  कुछ  सोंचे  
गमगिन होती हुइ, जिंदगी 

कुछ अपने को बदलने में 
 सपनो को समझने में 
पुराने रिश्तो की यादों में 
उलझ कर रह गई, जिंदगी

सफर के रास्तों में
थकान के फेरों में  
कोई न भूलनेवाली 
गलतियों में रह गई, जिंदगी

Tuesday, December 16, 2014

तलाश



कौन से सागर की तलाश में हो,

सरिता तो पास से ही बह रही है,

यकीन होता नहीं शब्दों के भंवर का 
फस जाये या डूब जाये 

दिल की धड़कनो से पल पल 
शब्द आते है पर............

मौन रहने में ही अच्छा  है

कली सी खिली तुम

 
चित्र गुगल से साभार
सावन की लहरों में 
फूलों के बहारों में 
कली सी खिली तुम

रिमझिम फुवारों में
मन के आँगन में   
कली सी खिली तुम

पलों के यादों में 
समय की हवाओं में 
कली सी खिली तुम

मुस्कुराती फिजाओ में 
सांसों की हवाओं में 
कली सी खिली तुम

अजनबी दिशाओं में 
मन की तरंगो में 
कली सी खिली तुम

नवपल्

चित्र गुगल से साभार
 
हरी लाल चूड़ियों के
खनकते पलों को 
याद करते उसके  
नवपल् के आगमन की

सिन्दूर सा लाल चेहरा 
श्रृंगार किये अपने को 
देखा  करते  उसके  
नवपल् के आगमन की

देहलीज़ पर खड़ी आतुरसी 
निहारती जीवित क्षणों को 
छवियों को महसूस करते 
नवपल् के आगमन की

चंद्राकार में छुपी मृगतृष्णा
अपनी ही छाया को छूने  
शरद रातों में खिले फूल के 
नवपल् के आगमन की

एक छुहन भूली सी
विलोम हुआ कृष्ण अंधकार 
क्रिया प्रक्रिया को प्रेरित करके
नवपल् के आगमन की

Monday, December 15, 2014

एक शुन्य

    साँसे मेरी थमने को है 
आँसूंओ का सैलाब बहने को है
मुस्कान  मेरी मानो गुजर सी गई 
सभी तस्वीरें गिर कर बिखर सी गई 
कुछ बचा नहीं सिर्फ ……………………….एक शुन्य 

पास आने में साये भी कतराने लगे है
फूलों  ने भी दूरियां बढाने लगे है
चाँद भी दूर हो गया घने बादलों में 
सूरज भी कही छुप गया आंधियों में  
कुछ बचा नहीं सिर्फ ……………………….एक शुन्य 

रिश्तों के आहट से भी उलझता  हूँ 
तिनको से भी बहोत घबराता हूँ 
आँखे मानो पथरा सी गई 
सांसे मानो थम सी गई 
कुछ बचा नहीं सिर्फ ……………………….एक शुन्य


चित्र गुगल से साभार

Tuesday, December 9, 2014

मन की छटपटाहट

क्षितिज सा अंतहीन सफर
अपने ही सायों के सिरों तक 
बिफरे हुये आकाश के आइनों में
टुटे हुये मन की छटपटाहट.......

वेदना पत्थर की सिरा पर
फुट रहे झरने आखों से
थकी हुई इच्छाओं की दुविधा में
टूटे हुए मन की छटपटाहट.......

समय बेबस सा हाथों में बंद
साझं के सन्नाटे की दुविधा में
उम्र ही ढल गई विचारों के क्षणों में
टुटे हुये मन की छटपटाहट.......

सुरज तपे मन की पीडा में
टुटे निर्मोही रिश्ते कंधो पर लादे
विवशता से प्रेरित दुख के अंतर में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

मंजिलों को तरसे टूटी दिवारें
आस्थाएं निराशा की वेदना में
पल पल ओझल पडाव के छल में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

दूर तक फैले आंसुओ की झील
एकाकी निर्जन सपने उलझाये
बीते हुए मौसम के डूबते सूरज में
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

साँझ धीरे धीरे गगन से उतरती हुई
अदृष्य को गढता गिले गालों पर 
निर्जीव मन की देह से सृजन करता गरल
टुटे हुये मन की छटपटाहट .......

Monday, December 8, 2014

संचित विश्वास


ओस कणो के आसूं
अपरिचित,
 संयोग क्षणिक
 स्वंय  का अस्तित्व
असहाय बन मिटा प्रतिपल
असीम उन्माद के
अपवाद में

चित्रों की आशा निराशा
क्षणीक उतेजना
गहरा कोहरा
भूलो के फूल में
 जीवन सुना


छलक गरल शिला सा क्षण
रथ चक्र क्षणों का पल
बिखरे प्राण
बिखरा
अस्तित्व का कोहरा

विषाद के कण
 अस्थिर
अनगिनत स्वर
अनसुनी कर
जलते सत्य की आग में

तृष्णा मुग्ध बेसुध
जर्जर  हुई  रुई  डोर
अस्थिर पथ पर चुर
अश्रु पात वीणा का तार
अभिमान माया की
 धुंधली यादों में



Saturday, December 6, 2014

मृग तृष्णा

  नभ अवनि में 
मोह के सागर में
जिसकी छाया
मृग तृष्णा बढाती 

अपार बंधन में 
अतीत के नातो में 
जिसकी काया  
मृग तृष्णा बढाती

भ्रामक आकर्षण में  
असंभव अस्तित्व में 
जिसकी माया 
मृग तृष्णा बढाती

अभिलाषा

                                     

राह दिखाने को
बुझ गए किसी दिन
शुन्य की झनंकार…..इस  जनम  में

यह जन्म हुआ निर्विकार 
सुनसान हाहाकार में
गुजरता कल छुआ…..प्रतीक्षा हरपल में 

स्वर बुलाते हैं मुझे
हृदयों में उमड़ती वेदना
बादलों में मुँह छिपा….साँससाँस जीवन में

Thursday, December 4, 2014

यादों में

तू ख्यालों से परे
आती  है खुशबू में
क़र्ज़ था किसी जनम का
आइने  की  यादों  में….

सपनों की दुनिया में
छिन सी गयी हैं
बस बाकी बचा था
आइने  की  यादों  में….

मानसिक व्यथा का
कभी हिचकियाँ दिलाती है
नहीं समझे है यह क्षण
आइने  की  यादों  में….

अब साँसे भी गिनता हूँ
 रेत पर मैं चल रहा हूं
खुद के ही साये से टकरा
आइने  की  यादों  में….

शब्दों का मायाजाल

ना अचारों से ना विचारों से
निकलती है मन के द्वारों से 
ना तुझमे ना मुझमें
उस दुनिया के सहचरों से 
ये शब्दों का मायाजाल है 

ना आँखों से ना हावों से 
राहों में नज़ारे दिखने से 
ना सवालों से ना जवाबों से 
भावनाओं के ऊंचाई से 
ये शब्दों का मायाजाल है

ना भावो को उकेरने  से 
ना राहों को बदलने से 
ना रिश्तों में ना बंधन में 
ना यादों को तड़पने से 
ये शब्दों का मायाजाल है

ना हौसलों से ना तूफ़ान से 
ना बदलते हुए आसमानो से 
ना काँटों से ना फूलों  से 
ना समझने के फेर से 
ये शब्दों का मायाजाल है

ना रचना से ना कहानी से 
ना गहरे भावों के प्रेम से 
ना ख्यालों से ना रिश्तों से 
ना प्यारी बातों के रेत से 
ये शब्दों का मायाजाल है

ना नैनो के नीर से ना तीर से 
ना साथ चलने के फेर से 
ना यादों से ना सपनो से 
ना शर्माने के बहाने से 
ये शब्दों का मायाजाल है 

ना लम्हों के रुकने से ना जाने से 
ना मजबूरी के बहाने से 
ना सांसो के रुकने से ना टूटने से 
जीवन की डोर के बहाने से 
ये शब्दों का मायाजाल है 

ना क़ागज़ से ना लबों से 
अधूरी पड़ी किताबो से 
ये शब्दों का मायाजाल है............
ये शब्दों का मायाजाल है............


तेरा खिलखिलाना

     सफर  एक  अजनबी  संग  में 
लाल  हरी चूड़ियों की रंग में 
रुनझुन करती पायल के अभंग में 
सुहाने पलों के उमंग में 
आज भी याद है तेरा खिलखिलाना .....

सभी तस्वीरों की यादों में 
पल पल बीतते हुए क्षणों में 
आँगन में यंहा से वंहा चलने में 
तिरछी नजरों की सायों में 
आज भी याद है तेरा खिलखिलाना .....

देखकर मुझे इठलाती सी
 न जाने क्यों पगली सी
बीते पलों की तस्वीरों सी   
चलती हुई मुस्कुराती सी 
आज भी याद है तेरा खिलखिलाना .....

मेरे अंश

       

 उनका बचपन उड़ते चले गए 
आँख मिचोली के खेल में 
उनका रूठना यादों में बस गए 
गलियों में धूम मचाने में 
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

नए ख़्वाबों के दुनिया में खो गए
पतंगों  के  तरह उड़ान में 
यादों के साये में चलते  गए
बारिशों  में धूम मचाने  में
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

सभी यादे रेत में ढहते गए 
भोली भोली दुनिया के राहों में 
घर मेरा उजाड़ बस्ती सा हो गए 
आज भी मन लौटने के वक़्त में 
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

एक फूल रह गया है………………
न जाने कब उड़ जाये…………... 
अपने नई राहों में ………………..
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए

Wednesday, December 3, 2014

ढलती यादें

    दिल पर एक फूल आंसू में भिगोता हूँ
मन के प्रतिबिम्ब में अँधेरे वक्त में भी
                       पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया

आखरी उम्मीद में बहते आँसुओं को
होगा जो जलता होगा भूल गए मंज़िल में भी
                       पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया

सोचने की क्षमता बँधने लगे हैं अँधेरों की एक छवि
आँखों का वो छलकता पानी लम्हों की झंकार में भी
                       पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया

ना कर सका  कोई इशारा  साँसें ऐसी थम गईं 
यादो में फिर से ऊलझ जायें कुछ पन्ने  में भी
                       पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया

वक़्त कहता है कि रोक दे आँसुओं को इन नैनों से
रोक ना पाते खुद को तब मूँद पलकें अपनी दोनों में भी
                       पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया

बेनाम

    

अधूरा ही रह जाता है
उम्मीद से बँधा था जो दिल
टूट गया बीच राह में ,
बिना नाम …..बिना पहचान के

टूटती इन साँसों में
आज बहाने दे तू मुझको
लम्बी रातों का सफ़र
बिना नाम …..बिना पहचान के

साँस मंथन करने लगी
जब कुछ रहा ही नहीं 
न जाने कितने शब्दों से
बिना नाम …..बिना पहचान के