रिमझिम बारिश के फुवारों में
आँखों की गहरी तपिश में
मुझमे अपना सावन उतार दो
सखी……
बंधे मौसम की आवाजों में
बिजलियों की हमसाये में
मुझमे अपना सावन उतार दो
सखी……
उम्मीदों और हवाओ में
मुक्त आनंदित स्पर्श में
मुझमे अपना सावन उतार दो
सखी……
मिलन की अतृप्त छाया में
सौंदर्य के साक्षात्कार में
मुझमे अपना सावन उतार दो
सखी……
मेघ मल्हार के विरह में
पहले बरसाती बूंदो में
मुझमे अपना सावन उतार दो
सखी……
फूलो से भरे अम्बर में
तुम ही न मिले जीवन में
मुझमे अपना सावन उतार दो
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