दिल पर एक फूल आंसू में भिगोता हूँ
मन के प्रतिबिम्ब में अँधेरे वक्त में भी
पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया
आखरी उम्मीद में बहते आँसुओं को
होगा जो जलता होगा भूल गए मंज़िल में भी
पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया
सोचने की क्षमता बँधने लगे हैं अँधेरों की एक छवि
आँखों का वो छलकता पानी लम्हों की झंकार में भी
पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया
ना कर सका कोई इशारा साँसें ऐसी थम गईं
यादो में फिर से ऊलझ जायें कुछ पन्ने में भी
पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया
वक़्त कहता है कि रोक दे आँसुओं को इन नैनों से
रोक ना पाते खुद को तब मूँद पलकें अपनी दोनों में भी
पथिक की तरह सूरज, नीचे चला गया
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