Thursday, December 4, 2014

मेरे अंश

       

 उनका बचपन उड़ते चले गए 
आँख मिचोली के खेल में 
उनका रूठना यादों में बस गए 
गलियों में धूम मचाने में 
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

नए ख़्वाबों के दुनिया में खो गए
पतंगों  के  तरह उड़ान में 
यादों के साये में चलते  गए
बारिशों  में धूम मचाने  में
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

सभी यादे रेत में ढहते गए 
भोली भोली दुनिया के राहों में 
घर मेरा उजाड़ बस्ती सा हो गए 
आज भी मन लौटने के वक़्त में 
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए 

एक फूल रह गया है………………
न जाने कब उड़ जाये…………... 
अपने नई राहों में ………………..
और 
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए 
एक एक कर विदा होते गए

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