आँख मिचोली के खेल में
उनका रूठना यादों में बस गए
गलियों में धूम मचाने में
और
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए
एक एक कर विदा होते गए
नए ख़्वाबों के दुनिया में खो गए
पतंगों के तरह उड़ान में
यादों के साये में चलते गए
बारिशों में धूम मचाने में
और
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए
एक एक कर विदा होते गए
सभी यादे रेत में ढहते गए
भोली भोली दुनिया के राहों में
घर मेरा उजाड़ बस्ती सा हो गए
आज भी मन लौटने के वक़्त में
और
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए
एक एक कर विदा होते गए
एक फूल रह गया है………………
न जाने कब उड़ जाये…………...
अपने नई राहों में ………………..
और
मेरे अंश, सामने मेरे बढ़ते गए
एक एक कर विदा होते गए
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