Thursday, March 12, 2015

रचना 3

अपना ही
अंतिम सफर महसूस किया है
एक और जन्म की दौड में
पर
विलक्षण
मेरी आत्मा
विनम्र और सर्वशक्तिमान
अपने स्थिर द्वार पर
मौन !!!
चित्र गुगल से साभार


उम्र
परछाइयो के
अभाव में
बोझिल कदमों से
घुट कर भीतर
मौन
ढलती
अधुरी यादों में
बह गए



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