Monday, March 23, 2015

अंतीम राह

चित्र गुगल से साभार


अंतहीन सफर
अपने ही सायों के सिरों तक 
बिफरे हुये आकाश के आइनों में
वेदनाओं के पत्थर की सिरा पर

फुट रहे थे झरने आखों से
थकी हुई थी इच्छाऐ
समय था बेबस 
उम्र के ढलान पर

साझं के
सन्नाटो की दुविधा में
टुटे निर्मोही रिश्ते कंधो पर लादे
मंजिलों को तरसे टूटी दिवारें

आस्थाएं निराशाये
पल पल ओझल पडावो में
दूर तक फैले आंसुओ की झील
एकाकी निर्जन सपने उलझाये

साँझ 
धीरे धीरे गगन से उतरती हुई
अदृष्य को गढती गिले गालों पर 
निर्जीव मन में  सृजन करता गरल

टुटे हुये मन की छटपटाहट .......



1 comment:

रेणु said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी लेखन आदरणीय सर !!!!!!!!!